Here is the Sanskrit anuvad, Hindi anuvad, and English translation of Sankhya Yoga Chapter 2, Verse 2.42.
Sanskrit
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः । वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥ २.४२ ॥
Hindi
हे अर्जुन! जो भोगोंमें तन्मय हो रहे हैं, जो हैं, जिनकी बुद्धिमें स्वर्ग ठी है और जो स्वर्गसे परम प्राप्य वस्तु बढ़कर दूसरी कोई वस्त ही नहीं है ऐसा कहनेवाले हैं, वे अविवेकीजन इस जिस पुष्पित अर्थात् दिखाऊ शोभायुक्त वाणीको कहा करते जो कि जन्मरूप कर्मफल देनेवाली एवं भोग तथा ऐश्वर्यकी प्राप्तिके लिये नाना प्रकारकी बहुत सी क्रियाओंका वर्णन करनेवाली है, उस वाणीद्वारा जिनका चित्त हर लिया गया है, जो भोग और ऐश्वर्यमें अत्यन्त आसक्त हैं: उन पुरुषोंकी परमात्मामें निश्चयात्मिका होती|
English
O ARJUNA, unwise people who think of nothing but material desires and pleasures, and who believe in the Vedas as well, think that heaven means the absolute end of oneself.